जिस दिल पे इश्क का दाग है उस चांद पे न नकाब है घर-घर में वो ही उदास है जिस हुस्न पर ये शबाब है ऐ खुदा, मुझे गिन के बता मेरे जख्म का क्या हिसाब है जो बेवफाई से ही जला ये जहान ऐसा चिराग है
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